पगली… मुझे कहनी है तुमसे बस इक बात, दास्तान लबो से सुनोगी या निगाहो से.
एक हसरत थी की कभी वो भी हमे मनाये..पर ये कम्ब्खत दिल कभी उनसे रूठा ही नही।
पहले तो यूं ही गुज़र जाती थीं, मोहोब्बत हुई… तो रातों का एहसास हुआ.
लोग हर बार यही पूछते हैं तुमने उसमें क्या देखा, मैं हर बार यही कहता हूँ , बेवजह होती है मोहब्बत।
क्या ऐसा नहीं हो सकता हम प्यार मांगे… और तुम गले लगा के कहो, “और कुछ?”
यूँ तो मझे झूठ से सख्त नफरत थी, किन अछा लगता था जब वो मुझेजान कहती थी.
मेरी जिन्दगी का हर लम्हा मोहब्बत से भरा है, बता तो सही कौन सा लम्हा तेरे नाम कर दे.
ये जो हलकी सी फ़िक्र करते हो न हमारी बस इसलिए हम बेफिक्र रहने लगे हैं।
मेरी ज़िन्दगी में खुशियाँ तेरे बहाने से हैं .. आधी तुझे सताने से हैं … आधी तुझे मनाने से हैं.
ये तो इश्क़ का कोई लोकतंत्र नहीं होता,वरना रिश्वत दे के तुझे अपना बना लेते !!
मै दौड़-दौड़ के खुद को पकड़ के लाता हूँ…तुम्हारे इश्क ने बच्चा बना दिया है मुझे.
वो जो दो पल थे तुम्हारी और मेरी मुस्कान के बीच … बस वहीँ कहीं इश्क़ ने जगह बना ली..